Friday, November 27, 2015

3rd Chapter 9th Sloka

यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धनः ।
तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसङ्गः समाचर ॥३.९॥

yajñārthātkarmaṇo'nyatra loko'yaṃ karmabandhanaḥ |
tadarthaṃ karma kaunteya muktasaṅgaḥ samācara ||3.9||

यज्ञार्थात् 5/1 कर्मणः 5/1 अन्यत्र 0 लोकः 1/1 अयम् 1/1 कर्मबन्धनः 1/1
तदर्थम् 2/1 कर्म 2/1 कौन्तेय 8/1 मुक्तसङ्गः 1/1 समाचर II/1 ॥३.९॥

·         यज्ञार्थात् [yajñārthāt] = for the sake of yajña = यज्ञार्थ (n.) + adj. to कर्मणः 5/1
·         कर्मणः [karmaṇaḥ] = than action = कर्मन् (n.) + विभक्ते 5/1
·         अन्यत्र  [antyatra] = other = अव्ययम्
·         लोकः [lokaḥ] = person = लोक (m.) + 1/1
·         अयम् [ayam] = this = इदम् (pron. m.) + 1/1
·         कर्मबन्धनः [karmabandhanaḥ] = bound by karma = कर्मबन्धन (m.) + 1/1
o   कर्म बन्धनं यस्य सः कर्मबन्धनः (116B)
·         तदर्थम् [tadartham] = for the sake of that (yajñā) = तदर्थ (n.) + adj. to कर्म 2/1
·         कर्म [karma] = action = कर्मन् (n.) + कर्मणि to समाचर 2/1
·         कौन्तेय [kaunteya] = Oh! kaunteya = कौन्तेय (m.) + सम्बोधने 1/1
·         मुक्तसङ्गः [muktasaṅgaḥ] = free from attachment = मुक्तसङ्ग (m.) + 1/1
o   मुक्तः सङ्गः यस्मात् सः (115B)
·         समाचर [samācara] = perform = सम् + आङ् + चर् (1P) to perform + लोट्/कर्तरि/II/1


This person who is enjoined (to do action) is bound by karma other than that performed for the sake of yajña, (i.e., other than the action performed as an offering to Īśvara). For this reason, O! Kaunteya, being one free from attachment, perform action for the sake of that (yajña).


Sentence1:
यज्ञार्थात् 5/1 कर्मणः 5/1 अन्यत्र 0 अयम् 1/1 लोकः 1/1 कर्मबन्धनः 1/1
This (अयम् 1/1) person who is enjoined (to do action) (लोकः 1/1) is bound by karma (कर्मबन्धनः 1/1) other (अन्यत्र 0) than that performed for the sake of yajña (यज्ञार्थात् 5/1 कर्मणः 5/1).


Sentence2:
कौन्तेय 8/1 मुक्तसङ्गः 1/1 तदर्थम् 2/1 कर्म 2/1 समाचर II/1 ॥३.९॥
For this reason, O! Kaunteya (कौन्तेय 8/1), being one free from attachment (मुक्तसङ्गः 1/1), perform (समाचर II/1) action (कर्म 2/1) for the sake of that (yajña) (तदर्थम् 2/1).





यत् 2/1 0 मन्यसे II/1बन्धार्थत्वात् 5/1 कर्म 1/1 0 कर्तव्यम् 1/1इति तत् 1/1 अपि 0 असत् 1/1 कथम् 0 --
यज्ञार्थात् 5/1 कर्मणः 5/1 अन्यत्र 0 लोकः 1/1 अयम् 1/1 कर्मबन्धनः 1/1
तदर्थम् 2/1 कर्म 2/1 कौन्तेय 8/1 मुक्तसङ्गः 1/1 समाचर II/1 ॥३.९॥
यज्ञो वै विष्णुः” (तै० सं 1.7.4) इति श्रुतेः 5/1 यज्ञः 1/1 ईश्वरः 1/1, तत्-अर्थम् 1/1 यत् 1/1 क्रियते III/1 तत् 1/1 यज्ञार्थम् 1/1 कर्म 1/1 तस्मात् 5/1 = कर्मणः 5/1 अन्यत्र 0 = अन्येन 3/1 = कर्मणा 3/1 लोकः 1/1 अयम् 1/1 (पुरुषः 1/1) अधिकृतः 1/1 कर्मकृत् 1/1 कर्मबन्धनः 1/1 = [कर्म 1/1 बन्धनम् 1/1 यस्य 6/1 सः 1/1 अयम् 1/1 कर्मबन्धनः 1/1 लोकः 1/1], 0 तु 0 यज्ञार्थात् 5/1 अतः 0 तदर्थं 2/1 यज्ञार्थं 2/1 कर्म 2/1 कौन्तेय 8/1, मुक्तसङ्गः 1/1 कर्मफलसङ्गवर्जितः 1/1 सन् 1/1 समाचर II/1 निर्वर्तय II/1

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