Wednesday, August 21, 2024

9th Chapter 26th Sloka

पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति ।

तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मनः ॥ ९.२६ ॥

 

patraṃ puṣpaṃ phalaṃ toyaṃ yo me bhaktyā prayacchati |

tadahaṃ bhaktyupahṛtamaśnāmi prayatātmanaḥ || 9.26 ||

 

पत्रम् 2/1 पुष्पम् 2/1 फलम् 2/1 तोयम् 2/1 यः 1/1 मे 4/1 भक्त्या 3/1 प्रयच्छति III/1

तत् 2/1 अहम् 1/1 भक्त्युपहृतम् 2/1 अश्नामि I/1 प्रयतात्मनः 6/1 ॥ ९.२६ ॥

 

·       पत्रम् [patram] = a leaf = + कर्मणि to प्रयच्छति 2/1

·       पुष्पम् [puṣpam] = a flower = + कर्मणि to प्रयच्छति 2/1

·       फलम् [phalam] = a fruit = + कर्मणि to प्रयच्छति 2/1

·       तोयम् [toyam] = water = + कर्मणि to प्रयच्छति 2/1

·       यः [yaḥ] = he who = यद् m. + कर्तरि to प्रयच्छति 1/1

·       मे [me] = me = अस्मद् m. + सम्प्रदाने to प्रयच्छति 4/1

·       भक्त्या [bhaktyā] = with devotion = भक्ति (f.) + करणे to प्रयच्छति 3/1

·       प्रयच्छति [prayacchati] = offers = प्र + दाण् दाने (1P) to give + लट्/कर्तरि/III/1

o   दाण् + शप् + तिप्

यच्छ + अ + ति           7.2.78 पाघ्राध्मास्थाम्नादाण्दृश्यर्त्तिसर्त्तिशदसदां पिबजिघ्रधमतिष्ठमनयच्छपश्यर्च्छधौशीयसीदाः । ~ शिति

·       तत् [tat] = that = तद् n. + adj. to भक्त्युपहृतम् 2/1

·       अहम् [aham] = I = अस्मद् m. + कर्तरि to अश्नामि 1/1

·       भक्त्युपहृतम् [bhaktyupahṛtam] = offering imbued with the devotion = भक्त्युपहृत n. + कर्मणि to अश्नामि 2/1

·       अश्नामि [aśnāmi] = receive = अश् (9P) + लट्/कर्तरि/I/1

·       प्रयतात्मनः [prayatātmanaḥ] = of the person whose mind is pure = प्रयतात्मन् (m.) + सम्बन्धे to भक्त्युपहृतम् 6/1

 

 

He who offers me with devotion – a leaf, a flower, a fruit, water – I receive that offering imbued with the devotion of the person whose mind is pure.

 

Sentence 1:

यः 1/1 पत्रम् 2/1 पुष्पम् 2/1 फलम् 2/1 तोयम् 2/1 मे 4/1 भक्त्या 3/1 प्रयच्छति III/1

अहम् 1/1 तत् 2/1 प्रयतात्मनः 6/1 भक्त्युपहृतम् 2/1 अश्नामि I/1 ॥ ९.२६ ॥

He who (यः 1/1) offers (प्रयच्छति III/1) me (मे 4/1) with devotion (भक्त्या 3/1) – a leaf (पत्रम् 2/1), a flower (पुष्पम् 2/1), a fruit (फलम् 2/1), water (तोयम् 2/1) – I (अहम् 1/1) receive (अश्नामि I/1) that (तत् 2/1) offering imbued with the devotion (भक्त्युपहृतम् 2/1) of the person whose mind is pure (प्रयतात्मनः 6/1)

 

 

न केवलं मद्भक्तानाम् अनावृत्तिलक्षणम् अनन्तफलम् , सुखाराधनश्च अहम् । कथम् ? —

पत्रं पुष्पं फलं तोयम् उदकं यः मे मह्यं भक्त्या प्रयच्छति, तत् अहं पत्रादि भक्त्या उपहृतं भक्तिपूर्वकं प्रापितं भक्त्युपहृतम् अश्नामि गृह्णामि प्रयतात्मनः शुद्धबुद्धेः ॥ २६ ॥

 

No comments:

Post a Comment

Please use this form to report typos, make suggestions, ask questions on grammatical points.
For English translation, interpretation, etc. Please refer to Bhagavad Gita Home Study Course.
Please note that this website is meant for grammar.
Thank you.

Medha Michika's books on Sanskrit Grammar are available at: Amazon in your country.

Free download of PDF files are available at Arsha Avinashi Foundation.